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हिन्दी साहित्य में विगीत विधा के जनक थे पुष्पेंद्र वर्णवाल

डाॅ. दीपक अग्रवाल
मुरादाबाद/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
साहित्यिक संस्था प्रगति मंगला,एटा की ओर से साहित्य के आलोक स्तम्भ कार्यक्रम के तहत मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार , इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता पुष्पेंद्र वर्णवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन किया गया । पटल प्रशासक नीलम कुलश्रेष्ठ द्वारा मां सरस्वती को नमन और दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम आरम्भ हुआ।

कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा स्मृतिशेष साहित्यकार पुष्पेंद्र वर्णवाल न केवल एक उल्लेखनीय साहित्यकार थे बल्कि एक इतिहासकार और पुरातत्व वेत्ता भी थे। मुरादाबाद जनपद के इतिहास के संबंध में उनके खोजपूर्ण लेख अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। यही नहीं उन्होंने हिन्दी साहित्य में विगीत विधा को भी जन्म दिया। आपकी मुरादाबाद के शिक्षण संस्थान, मुरादाबाद के पूजा स्थान और बलि विज्ञान नामक तीन कृतियों का जापानी भाषा में अनुवाद ओसाका(जापान) निवासी प्रसिद्ध हिंदीविद डॉ कात्सुरा कोगा द्वारा किया जा चुका है । इसके अतिरिक्त आपकी कृति विरोधोद्धार का डॉ भूपति शर्मा जोशी द्वारा संस्कृत और शब्द मौन का ऋषिकांत शर्मा द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है । आपकी कुछ कहानियों व लघुकथाओं का गुजराती व पंजाबी भाषा में भी अनुवाद हुआ है । आपके कृतित्व पर शोध प्रबंध – प्रणय मूल्यों की अभिव्यक्ति रूनूतन शिल्प विधान (पुष्पेंद्र वर्णवाल के काव्य लोक में) -जय प्रकाश तिवारी श्जेपेशश्, पुष्पेंद्र वर्णवाल के विगीत-एक तात्विक विवेचन -डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र, कवि पुष्पेंद्र वर्णवाल और उनका साहित्य – डॉ एस पी शर्मा, विगीत और प्रेयस- राजीव सक्सेना प्रकाशित हो चुके हैं ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आचार्य डॉ प्रेमी राम मिश्र पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष जे. एल. एन. कॉलेज एटा ने कहा सुनाम धन्य पुष्पेंद्र वर्णवाल जी का कृतित्व चमत्कृत करता है। कविता केवल कोरा शब्द व्यापार नहीं है ,उसमें संवेदनात्मक विचारों का संगुफन होना अनिवार्य होता है। जब कविता में शांत, विनम्र ढंग से हल्का तनाव या कंपन संगठित शिल्प के माध्यम से अभिव्यक्त होता है, तो वह सहृदय पाठक को अभिभूत किए बिना नहीं रहती। पुष्पेंद्र वर्णवाल की कविता अपनी अंतर्वस्तु और संवेदनात्मक अनुभूति के कारण मार्मिक प्रभाव स्थापित करती है। आपने प्रणय को आधार बनाकर प्रणय दीर्घा, प्रणय योग, प्रणय बंध ,प्रणय गीत, प्रणय परिधि, प्रणय पर्व जैसी हृदयस्पर्शी काव्य कृतियां प्रस्तुत की हैं।
बदायूं के साहित्यकार उमाशंकर राही ने कहा पुष्पेंद्र वर्णवाल धरातल से जुड़े साहित्यकार थे । कविता के साथ साथ प्राकृतिक सम्पदा से उन्हें बहुत लगाव था वह एक अच्छे पुरातत्ववेत्ता भी थे ।
चर्चित नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा पुष्पेन्द्र जी ने गीत, मुक्तक, दोहे सहित कविता के अन्य अनेक प्रारूपों में तो प्रचुर मात्रा में सृजन किया ही, गद्य की भी अनेक विधाओं में महत्वपूर्ण सृजन किया. वह एक समर्थ रचनाकार तो थे ही, साहित्य के अतिरिक्त अन्य कई विषयों के प्रकांड विद्वान भी थे. इतिहास और ज्योतिष के संदर्भ में उन्हें वृहद ज्ञान था और वह अपने तर्कों के समर्थन में तथ्यात्मक प्रमाणों के साथ बहस करने से भी पीछे नहीं हटते थे।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा – स्मृति शेष पुष्पेन्द्र वर्णवाल को हिंदी साहित्य जगत में विगीत के जन्म दाता के रूप में भी जाना जाता है। अनेक लेखकों ने उनको विगीत के जनक के रूप में कोड किया है।इसके अतिरिक्त पुष्पेन्द्र जी प्रणय गीतों के रचियता के रूप में भी एक अलग स्थान रखते थे।
प्रगति मंगला के संस्थापक एटा के वरिष्ठ साहित्यकार बलराम सरस ने कहा – कवि पुष्पेन्द्र जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। छन्द के हर विधान पर उनका सृजन हुआ है। अनेकानेक पुस्तकें प्रकाशित हुई जो हिन्दी साहित्य में अपना योगदान करने की सामर्थ्य रखती हैं। वर्णवाल जी भी फक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे ।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा स्मृतिशेष पुष्पेन्द्र वर्णवाल महान पुरातत्ववेत्ता, विज्ञान सम्मत अध्यात्म के समर्थक, ऐतिहासिक ग्रन्थों व मनीषियों के अपूर्व अद्भुत शोधकर्ता ,यायावर, ग्रह नक्षत्रों की ज्यामिति फलित ज्योतिष पर अनूठी पकड़ रखने वाले, सनातन धर्म के सच्चे साधक समर्थक,ऋषि परम्परा के पथानुरागी थे। वह हिंदीभाषा के प्रकाण्ड विद्वान तो थे ही विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारणअंग्रेजी भाषा पर भी उनकी खासी पकड़ थी ।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल जी का व्यक्तित्व उत्साह ,उमंग और उल्लास से परिपूर्ण था ।
कार्यक्रम में आशा दिनकर श्आसश् नई दिल्ली, विजय चतुर्वेदी विजय आगरा, सोनम यादव, गाजियाबाद, अनिल कांत बंसल मुरादाबाद, यशोधरा यादव, सीता पवन, डॉ संगीता राज ने भी विचार व्यक्त किये । कार्यक्रम की संचालक गुना (मध्य प्रदेश) की साहित्यकार नीलम कुलश्रेष्ठ ने आभार व्यक्त किया ।

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Dr. Deepak Agarwal
Dr. Deepak Agarwal is the founder of SunShineNews. He is also an experienced Journalist and Asst. Professor of mass communication and journalism at the Jagdish Saran Hindu (P.G) College Amroha Uttar Pradesh. He had worked 15 years in Amur Ujala, 8 years in Hindustan,3years in Chingari and Bijnor Times. For news, advertisement and any query contact us on deepakamrohi@gmail.com
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