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आनलाइन शिक्षणः राष्ट्रीय पुरस्कृत शिक्षक श्योनाथ का विश्लेषण

डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश। (सनशाइन न्यूज)
यों तो समग्र संसार कोरोना महामारी के कारण त्रस्त है और गंभीर त्रासदी से गुजर रहा है। हम अपने देश – प्रदेश को लेकर बात कर रहे हैं कि लाक डाउन के चलते देश – प्रदेश के सभी क्षेत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। चाहे व्यापारिक हो या कृषि संबंधी, सभी काम बुरी तरह से प्रभावित है लोग कोरोना के भय के कारण घरों में बैठे हैं।
लाक डाउन का भी कोई निश्चित समय सीमा नहीं है। जहां अन्य क्षेत्रों में प्रभाव पड़ा वही शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जब बच्चों की पढ़ाई का और परीक्षा का समय चल रहा था तभी लाक डाउन लग गया।
इससे छोटे बच्चों की शिक्षा अत्यंत प्रभावित है। कुप्रभाव को कम करने के लिए सरकार और व्यक्तिगत विद्यालयों द्वारा आनलाइन शिक्षण व्यवस्था को लागू कर शिक्षण कार्य को पटरी पर लाने का प्रयास किया। जो शनैः – शनैः आगे बढा। जब हम माध्यमिक या उच्च शिक्षा की बात करें कुछ प्रतिशत लाभ मिल सकता है परन्तु
यदि हम बेसिक शिक्षा विभाग की बात करें तो छोटे बच्चों के लिए कितना कारगर है यह शिक्षण विचारणीय ही है।
सरकारी आदेश अलग बात है और वास्तविक स्थिति अलग है। ग्रामीण परिवेश के छोटे बच्चे इस व्यवस्था से कितने लाभान्वित होंगे? जिन गरीबों को परिवार चलाने में छोटे – छोटे अपने पाल्यों का सहारा लेना पड़ता हो वहां यह सुविधा ऐसे समय में कितनी कारगर हो सकती है। सोचें।
आजकल गेहूं की फसल कटाई में ग्रामीण अभिभावक चाहता है कि बच्चों से कुछ सहारा मिले। तो फिर ऐसी पढाई में कितनी रूचि हो सकेगी। दूसरे यह भी आवश्यक नहीं कि इससे संबंधित सुविधा भी उपलब्ध हो।
ग्रामीण क्षेत्रों में तो परीक्षा दिलाने के लिए भी शिक्षक को बच्चों को घर से बुलाना तक पङता है और भी शिक्षा के महत्व को ग्रामीणों द्वारा कम ही महत्व दिया जाता है। ऊपर से सामाजिक कार्य।
हां मध्यमवर्गीय व उच्च वर्गीय लोग जिनके पास साधन है और अच्छे स्कूल में उनके बच्चे दाखिल हैं अभिभावक जागरूक शिक्षा को जानते हैं निश्चित कुछ लाभ ले सकने में समर्थ हो सकते हैं।

बेसिक शिक्षा विभाग में उच्च प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को कुछ समझ विकसित हो जाती है जिससे अवकाश और इस विशेष समय में आंशिक लाभ मिल सकता है। किन्तु नीचे के बच्चों के लिए शायद ही कोई ऐसा लाभ मिले जो खुले विद्यालय के काम की भरपाई कर सके। हां यदि पूर्व से ऐसी तैयारी की गई होती तो ज्यादा अच्छा होता।
पूर्व सरकार द्वारा कुछ स्कूलों को कम्प्यूटरीकृत किया गया था। संभव है उन उच्च प्राथमिक विद्यालय के बच्चे ज्यादा समझ सकें। आनलाइन शिक्षण व्यवस्था से जहां सरकार ने अपना दृष्टिकोण सकारात्मक प्रदर्शित करने की चेष्टा की है वहीं एक बङा खतरा भी है कि बच्चों में इस व्यवस्था से फोन प्रेम जागृत होगा और वह मोबाइल की ओर निश्चित लालायित रहेगा।
भय इस बात का है कि कहीं बच्चों को मोबाइल देखने की आदत न पनप जाय और छोटे बच्चों की आंखों पर भी कुप्रभाव पङने से कहीं दृष्टि दोष उत्पन्न न हो जाए।
फिर भी इस हेतु अभिभावक वर्ग का इस ओर सजग रह फायदा लेना ही समसामयिक होगा। सावधान रहना आवश्यक है। वैसे यदि जागरूक होकर शिक्षण दिया और दिलाया जाय तो सब को तो नहीं कुछ लाभान्वित हो सकते हैं। लाकडाउन में घर बैठे दिए गये समय पर बच्चे को बैठाकर पढवाया जा सकता है।
शिक्षक गण तो समर्पित हैं ही। सरकार को भविष्य में इस प्रणाली को लागू करने के लिए संसाधन उपलब्धता पर ध्यान देना चाहिए।
लेखकः श्योनाथ सिंह
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त सेवा निवृत्त शिक्षक
महेशरा (अमरोहा)
मोबाइल – 9837173723

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Dr. Deepak Agarwal
Dr. Deepak Agarwal is the founder of SunShineNews. He is also an experienced Journalist and Asst. Professor of mass communication and journalism at the Jagdish Saran Hindu (P.G) College Amroha Uttar Pradesh. He had worked 15 years in Amur Ujala, 8 years in Hindustan,3years in Chingari and Bijnor Times. For news, advertisement and any query contact us on deepakamrohi@gmail.com
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