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सैनिक और शहीद के परिवार की जिम्मेदारी समाज उठाए

अशोक मधुप/सनशाइन न्यूज………………….

प्रधानमंत्री ने वाराणसी में एक कार्यक्रम में आह्वान किया कि समाज और संपन्न व्यक्ति गरीब कन्या की शादी की जिम्मेदारी निभाए। वे समाज से ये भी तो कहें कि वह अपने आसपास के सैनिक − अर्ध सैनिक बल के जवान और शहीद सैनिकों के परिवार की जिम्मेदारी निभाए। उनके परिवार की बेटी और बहिन की शादी अपनी बहिन और बेटी की तरह करे। उनका ध्यान रखें । देखरेख करें ।
रायबरेली के मीर मीरानपुर गांव के सीआरपीएफ के जवान शैलेंद्र प्रताप सिंह पिछले साल पांच अक्तूबर को सोपोर में आतंकवादियों से मुकाबले में शहीद हो गए थे। अभी 13 दिसंबर को उनकी छोटी बहिन ज्योति की शादी थी। परिवार में शादी की खुशी थी, तो सबको ये मलाल भी था कि परिवार का बड़ा बेटा उनके बीच नहीं होगा।

शादी के समय लगभग डेढ़ दर्जन सीआपीएफ के जवान बार्डर से मंडप में पहुंचे।जवानों ने साथी की बहन को आशीर्वाद दिया ।उसके नए जीवन की शुरूआत के लिए मंगलकामनाएं की । उसको उपहार भी दिए। जवान बहन को फूलों की चादर के नीचे लेकर स्टेज तक गए। कुछ जवान ड्रेस में थे। कुछ सिविल में। उन्होंने भाई द्वारा निभाई जाने वाली सारी रस्म अदा कीं। बहिन से वायदा किया कि वह अपने को अकेली न समझे। उसके बहुत भाई हैं। यह दृश्य भाव विभोर करने वाला था। यह देख मंडप में मौजूद सभी की आंखों नम था। कई व्यक्ति तो फफक− फफक कर रो पड़े।

जवान के शहीद होने पर उसकी शव यात्रा में हजारों नौजवान भाग लेते हैं।दूर−दूर से शहीद की शव यात्रा में शामिल होने लोग आते हैं। शव यात्रा में शहीद होने वाले की जय−जयकार करते हैं। उसके बाद धीरे धीरे सब भूल जाते हैं।देशभक्ति का सारा जूनून सैनिक के अंतिम संस्कार के साथ खत्म हो जाता है।शहीद के परिवार पर क्या बीतती है, कोई सोचता भी नहीं। शहीद के माता− पिता की क्या हालत है, किसी को ध्यान भी नहीं रहता।उसके बच्चों की पढ़ाई हो रही है, या नहीं , स्कूल में एडमीशन हुआ या नहीं, इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। सरकार मृतक के परिवार को मुआवजा देकर इतिश्री कर लेती है। विभाग भी मुआवजे तक ही ध्यान रखता है।बाद में उनके परिवार पर क्या बीतती है, कोई नही देखता। उनके परिवार की जरूरत और संकट में कोई साथ नहीं आता।

शहीद की बहिन की शादी में जो भाई की जिम्मेदारी निभाने का काम बार्डर से आकर शहीद के साथी जवानों ने किया, वह मुहल्ले, गांव और वार्ड के युवक,वार्ड कमेटी क्यों नही करती।कुछ समय पूर्व तक गांव की हर लड़की गांव की बेटी होती थी। उसकी शादी में पूरा गांव शिरकत करता था। युवक शादी की व्यवस्था देखते थे। बुजुर्ग शादी की जिम्मेदारी निभाते थे। ध्यान रखते थे , कुछ कमी न रह जाए। ऐसा सैनिक के परिवार के साथ क्यों नही होता।गांव ,मुहल्ला और वार्ड के निवासी उस क्षेत्र के सैनिक के परिवार को अपना परिवार क्यों नही मानता।मेरे एक परिचित बीएसफ में डिप्टी कमांडेंट है। वे कहते है कि कोरोना में देशभर में लाँक डाउन लगा ,किसी ने भी ये जिम्मेदारी नहीं निभाई कि आसपास के सैनिक और अर्ध सैनिक बल के जवान के परिवार से पूछ ले कि उसके पास खाने आदि की क्या व्यवस्था है।कोई परेशानी तो नहीं। परेशानी है तो उनकी मदद करें।

सैनिक डयूटी के दौरान भी अपने परिवार के काम के लिए अधिकारियों के चक्कर काटतें हैं। अधिकारियों को उनके प्रशिक्षण के दौरान ये कयों नही पढ़ाया जाता, कि इन सीमा पर तैनात सैनिकों की बदौलत देश सुरक्षित है। सैनिक सीमा पर गर्मी, सर्दी, बर्फ में दिन −रात पहरा देते हैं, इसीकी बदौलत हम घर में आराम से सोते हैं। उनका कार्य सर्वप्रथम होना चाहिए।

छतीसगढ़ के कांकेर जिले मुसुरपट्टा गांव वाले ग्राम के हाईस्कूल और इंटर के टापर को हवाई जहाज से यात्रा कराते हैं।ग्राम पंचायत छात्र− छात्राओं को पढ़ने− लिखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ऐसा करते हैं।ग्राम पंचायत , मुहल्ले ,वार्ड अपने क्षेत्र के सैनिक के परिवार को क्यों नहीं गोद लेते। एक मुहल्ले में एक या दो सैनिक के परिवार रहते होंगे।उन सैनिको से मुहल्ले वाले क्यों नहीं कहते − तुम आराम से सीमा की सुरक्षा करो। तुम्हारे परिवार की सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी हमारी। यदि ऐसा हो जाए तो दुनिया में अपनी बहादुरी के लिए विख्यात भारतीय सेना और उसके जवान नया इतिहास लिखेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह देश के सुरक्षा बलों के बीच जाते हैं, उनसे मिलते हैं।उन्हें प्रोत्साहित करते हैं किंतु सैनिकों के परिवार की देख−रेख उनकी समस्याओं के निदान के लिए जिले से लेकर गांव स्तर पर सैनिकों के परिवार की सुरक्षा का ढांचा क्यों नही तैयार करते।अपने जिले में तैनात पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को क्यों नहीं कहते कि सैनिक और अर्द्ध सैनिकबल के जवानों को उनके कार्यालयों में पूरा सम्मान मिलना चाहिए। प्रथम प्राथमिकता पर उनके काम हों। देश की सुरक्षा के लिए तैनात सैनिक और उसके परिवार की जिम्मेदारी समाज और प्रशासन को उठानी चाहिए।

(लेखक अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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Dr. Deepak Agarwal
Dr. Deepak Agarwal is the founder of SunShineNews. He is also an experienced Journalist and Asst. Professor of mass communication and journalism at the Jagdish Saran Hindu (P.G) College Amroha Uttar Pradesh. He had worked 15 years in Amur Ujala, 8 years in Hindustan,3years in Chingari and Bijnor Times. For news, advertisement and any query contact us on deepakamrohi@gmail.com
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