Home > देश > यूपीकोका, राजनीति और भष्टाचार

यूपीकोका, राजनीति और भष्टाचार

डॉ.दीपक अग्रवाल/भोलानाथ मिश्र
भ्रष्टाचार की आड़ में हर सरकार में राजनैतिक विरोधियों को विभिन्न मामलों में फंसाकर दुश्मनी का बदला लेने की एक परम्परा बनती जा रही है। राजनैतिक दलों अथवा उसके नेताओं पर मनगढ़ंत मनमाने आरोप लगाकर उस पर मुकदमा चला कर बदनाम करने का दौर चल रहा है। इसी राजनीति के फेर में उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक यूपीकोका 2017 फंसा है। विधान सभा से पास होकर यह विधान परिषद में लटक गया है।
राजनैतिक नेताओं के भ्रष्टाचार से जुड़े तमाम मामले इधर कुछ दशकों में सामने आ चुके हैं और तमाम नेताओं का राजनैतिक भविष्य अंधकारमय हो गया है और चुनाव लड़ने लायक नहीं रह गये हैं।
अभी दो दिन पहले देश दुनिया के बहुचर्चित टूजी घपले के मुकदमें में अदालत ने फैसला सुनाकर सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है। यह मामला अपने जमाने का बहुचर्चित मामला था और सीबीआई ने इसे पकड़कर मुकदमा चलाया था।
इसी तरह बसपा सरकार में पूर्व मंत्री राजा भैया को बहुचर्चित मकोका कानून के तहत गिरफ्तार करके मुकदमा चलाया गया था जो बाद में कामियाब नहीं हो पाया था। मकोका एक्ट की तर्ज पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ जी की सरकार यूपीकोका एक्ट बनाने जा रही है और विधानसभा में इसकी विपक्ष के तमाम विरोध के मंजूरी भी मिल गयी है।
विपक्षी इसे काला कानून बता रहे हैं तो सरकार इसे समाज माफियाओं पर लगाम लगाने का प्रयास बता रही है और वायदा कर रही है कि इसका इस्तेमाल राजनैतिक बदले की भावना से नहीं किया जायेगा। इसके बावजूद विपक्षियों को योगीजी की बात पर यकीन नहीं हो रहा है क्योंकि इधर तीन चार दशकों में कुछ ऐसे संगठित गिरोह बन गये हैं जो कानून को मजाक बनाकर सरकारी व समाजिक अपराध कर रहें हैं।
राजनीति की परम्परा रहीं हैं कि वह सत्ता में आती है अपनी ताकत विरोधियों को दिखाती है। विपक्षी अपनी ताकत अपने अपने कार्यकाल में दिखा चुके हैं इसलिए उन्हें लग रहा है कि योगीजी भी इसका इस्तेमाल उन्हें मिटाने में जरूर करेगें।
राजनीति समाज और सरकार में तमाम लोग ऐसे बैठे हैं जिनकी रोजी रोटी संगठित गिरोह के सहारे चलती हैं। योगीजी के मकोका में उन पत्रकारों को भी शामिल कर लिया है जो इन संगठित गिरोहों के इशारे पर कार्य करते हैं। इस कानून से सबसे ज्यादा लाभ समाज के लोगों को मिलेगा और अपराध एवं भयमुक्त समाज निर्माण में निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है बशर्ते इसका दुरुपयोग न किया जाय।
दुरुपयोग और उपयोग का पुराना साथ है इन्हें अलग करना आसान नहीं है क्योंकि शुरुआत उपयोग के नाम से होती है दुरुपयोग तो बाद में होने लगता है। यूपीकोका जैसे कानून में फंसने का मतलब जीवन बरबाद होना होगा और इसका दुरुपयोग होता है तो निश्चित तौर पर भविष्य में काला कानून साबित हो सकता है। फिलहाल यह विधान परिषद में लटक गया है।

Print Friendly, PDF & Email
Dr. Deepak Agarwal
Dr. Deepak Agarwal is the founder of SunShineNews. He is also an experienced Journalist and Asst. Professor of mass communication and journalism at the Jagdish Saran Hindu (P.G) College Amroha Uttar Pradesh. He had worked 15 years in Amur Ujala, 8 years in Hindustan,3years in Chingari and Bijnor Times. For news, advertisement and any query contact us on deepakamrohi@gmail.com
https://www.sunshinenews.in
error: Content is protected !!